पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनंजयः।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः।।1.15।।
।।1.15।।अन्तर्यामी भगवान् श्रीकृष्णने पाञ्चजन्य नामक तथा धनञ्जय अर्जुनने देवदत्त नामक शंख बजाया और भयानक कर्म करनेवाले वृकोदर भीमने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया।
।।1.15।। व्याख्या पाञ्चजन्यं हृषीकेशः सबके अन्तर्यामी अर्थात् सबके भीतरकी बात जाननेवाले साक्षात् भगवान् श्रीकृष्णने पाण्डवोंके पक्षमें खड़े होकर पाञ्चजन्य नामक शंख बजाया। भगवान्ने पञ्चजन नामक शंखरूपधारी दैत्यको मारकर उसको शंखरूपसे ग्रहण किया था इसलिये इस शंखका नाम पाञ्चजन्य हो गया। देवदत्तं धनञ्जयः राजसूय यज्ञके समय अर्जुनने बहुतसे राजाओंको जीतकर बहुत धन इकट्ठा किया था। इस कारण अर्जुनका नाम धनञ्जय पड़ गया (टिप्पणी प0 14) । निवातकवचादि दैत्योंके साथ युद्ध करते समय इन्द्रने अर्जुनको देवदत्त नामक शंख दिया था। इस शंखकी ध्वनि बड़े जोरसे होती थी जिससे शत्रुओंकी सेना घबरा जाती थी। इस शंखको अर्जुनने बजाया। पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः हिडिम्बासुर बकासुर जटासुर आदि असुरों तथा कीचक जरासन्ध आदि बलवान् वीरोंको मारनेके कारण भीससेनका नाम भीमकर्मा पड़ गया। उनके पेटमें जठराग्निके सिवाय वृक नामकी एक विशेष अग्नि थी जिससे बहुत अधिक भोजन पचता था। इस कारण उनका नाम वृकोदर पड़ गया। ऐसे भीमकर्मा वृकोदर भीमसेनने बहुत ब़ड़े आकारवाला पौण्ड्र नामक शंख बजाया।