द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्।।1.18।।
।।1.18।।हे राजन् राजा द्रुपद द्रौपदी के पुत्र और महाबाहु सौभद्र (अभिमन्यु) इन सब ने अलगअलग शंख बजाये।
।।1.18।। इन श्लोकों में उन महारथियों के नाम हैं जिन्होंने अत्यन्त उत्साह के साथ बारंबार प्रचण्ड ध्वनि से शंखनाद किया। भीष्म पितामह के धराशायी होने में शिखण्डी कारण था। सात्यकि भी पाण्डव सेना में एक महारथी था। यहाँ पृथिवीपते यह संबोधन धृतराष्ट्र के लिए प्रयुक्त है।