न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा।।1.32।।
।।1.32।।हे कृष्ण मैं न तो विजय चाहता हूँ? न राज्य चाहता हूँ और न सुखोंको ही चाहता हूँ। हे गोविन्द हमलोगोंको राज्यसे क्या लाभ भोगोंसे क्या लाभ अथवा जीनसे भी क्या लाभ
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