तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव।।1.37।।
।।1.37।।इसलिये अपने बान्धव इन धृतराष्ट्रसम्बन्धियोंको मारनेके लिये हम योग्य नहीं हैं क्योंकि हे माधव अपने कुटुम्बियोंको मारकर हम कैसे सुखी होंगे
।।1.37।।हे माधव इसलिये अपने बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना हमारे लिए योग्य नहीं है क्योंकि स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे।