तस्मान्नार्हा वयं हन्तुं धार्तराष्ट्रान्स्वबान्धवान्।
स्वजनं हि कथं हत्वा सुखिनः स्याम माधव।।1.37।।
।।1.37।।हे माधव इसलिये अपने बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारना हमारे लिए योग्य नहीं है क्योंकि स्वजनों को मारकर हम कैसे सुखी होंगे।
।।1.37।। ऐसा प्रतीत होता है कि अर्जुन के तर्क शास्त्रसम्मत हैं। जाने या अनजाने शास्त्रों का विपरीत अर्थ करने वाले लोगों के कारण दर्शनशास्त्र की अत्यधिक हानि होती है। अर्जुन अपने दिये हुये तर्कों को ही सही समझकर उनसे सन्तुष्ट हुआ इस खतरनाक निर्णय पर पहुँचता है कि उसको इन आक्रमणकारियों को नहीं मारना चाहिये भगवान् फिर भी शान्त रहते हैं।श्रीकृष्ण के मौन से वह और भी अधिक विचलित होकर उनसे दयनीय भाव से प्रार्थना करते हुए अपने मूर्खतापूर्ण निर्णय की पुष्टि चाहता है। दीर्घकाल तक साथ में रहने से दोनों में स्नेहभाव बढ़ गया था और इसी कारण अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण को माधव नाम से सम्बोधित करके पूछता है कि स्वबान्धवों की ही हत्या करके कोई व्यक्ति कैसे सुखी रह सकता है। भगवान् फिर भी मौन रहते हैं।