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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 43

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 43

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।।1.43।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 1.43)

।।1.43।।इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषोंसे कुलघातियोंके सदासे चलते आये कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।1.43।।इन वर्णसंकर कारक दोषों से कुलघाती दोषों से सनातन कुलधर्म और जातिधर्म नष्ट हो जाते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।1.43।। व्याख्या    दोषैरेतैः कुलघ्नानाम् ৷৷. कुलधर्माश्च शाश्वताः   युद्धमें कुलका क्षय होनेसे कुलके साथ चलते आये कुलधर्मोंका भी नाश हो जाता है। कुलधर्मोंके नाशके कुलमें अधर्मकी वृद्धि हो जाती है। अधर्मकी वृद्धिसे स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं। स्त्रियोंके दूषित होनेसे वर्णसंकर पैदा हो जाते हैं। इस तरह इन वर्णसंकर पैदा करनेवाले दोषोंसे कुलका नाश करनेवालोंके जातिधर्म (वर्णधर्म) नष्ट हो जाते हैं।कुलधर्म और जातिधर्म क्या हैं एक ही जातिमें एक कुलकी जो अपनी अलगअलग परम्पराएँ हैं अलगअलग मर्यादाएँ हैं अलगअलग आचरण हैं वे सभी उस कुलके कुलधर्म कहलाते हैं। एक ही जातिके सम्पूर्ण कुलोंके समुदायको लेकर जो धर्म कहे जाते हैं वे सभी जातिधर्म अर्थात् वर्णधर्म कहलाते हैं जो कि सामान्य धर्म हैं और शास्त्रविधिसे नियत हैं। इन कुलधर्मोंका और जातिधर्मोंका आचरण न होनेसे ये धर्म नष्ट हो जाते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।1.43।। पूर्व श्लोक की टीका का अर्थ अर्जुन के इस वाक्य से और अधिक स्पष्ट हो जाता है। जैसा कि हमने देखा धर्म का अर्थ है भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति जिसका प्रशिक्षण प्रत्येक घर में ही प्रारम्भ से मिलता था। अर्जुन का यह भय कि इस गृहयुद्ध से जातिधर्म व कुलधर्म नष्ट हो जायेंगे सामान्य ज्ञान की बात है। यह सुविदित है कि प्रत्येक युद्ध के बाद समाज में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का सहसा कितना पतन होने लगता है। अनैतिकता और छलकपट की प्रवृत्तियों के नीचे दबा हाँफ रहा आज का युग उपरोक्त तथ्य का ज्वलंत उदाहरण है। युद्ध के बाद न केवल लंगड़े लूलों की संख्या बढ़ती है वरन् उससे भी भयंकर परिणाम मन की गंभीर विकृतियों के रूप में सामने आते हैं।इन श्लोकों में हम अर्जुन को संसार के सर्वप्रथम युद्धविरोधी व्यक्ति के रूप में पाते हैं। इन अनुच्छेदों में वह शान्ति प्रिय लोगों के लिये सार्वकालिक तर्कों की एक सुन्दर शृंखला भेंट करता है।