अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।
।।1.7।।हे द्विजोत्तम हमारे पक्षमें भी जो मुख्य हैं? उनपर भी आप ध्यान दीजिये। आपको याद दिलानेके लिये मेरी सेनाके जो नायक हैं? उनको मैं कहता हूँ।
।।1.7।। व्याख्या अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम दुर्योधन द्रोणाचार्यसे कहता है कि हे द्विजश्रेष्ठ जैसे पाण्डवोंकी सेनामें श्रेष्ठ महारथी हैं ऐसे ही हमारी सेनामें भी उनसे कम विशेषतावाले महारथी नहीं हैं प्रत्युत उनकी सेनाके महारथियोंकी अपेक्षा ज्यादा ही विशेषता रखनेवाले हैं। उनको भी आप समझ लीजिये। तीसरे श्लोकमें पश्य और यहाँ निबोध क्रिया देनेका तात्पर्य है कि पाण्डवोंकी सेना तो सामने खड़ी है इसलिये उसको देखनेके लिये दुर्योधन पश्य (देखिये) क्रियाका प्रयोग करता है। परन्तु अपनी सेना सामने नहीं है अर्थात् अपनी सेनाकी तरफ द्रोणाचार्यकी पीठ है इसलिये उसको देखनेकी बात न कहकर उसपर ध्यान देनेके लिये दुर्योधन निबोध (ध्यान दीजिये) क्रियाका प्रयोग करता है। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते मेरी सेनामें भी जो विशिष्टविशिष्ट सेनापति हैं सेनानायक हैं महारथी हैं मैं उनके नाम केवल आपको याद दिलानेके लिये आपकी दृष्टि उधर खींचनेके लिये ही कह रहा हूँ। संज्ञार्थम् पदका तात्पर्य है कि हमारे बहुतसे सेनानायक हैं उनके नाम मैं कहाँतक कहूँ इसलिये मैं उनका केवल संकेतमात्र करता हूँ क्योंकि आप तो सबको जानते ही हैं।इस श्लोकमें दुर्योधनका ऐसा भाव प्रतीत होता है कि हमारा पक्ष किसी भी तरह कमजोर नहीं है। परन्तु राजनीतिके अनुसार शत्रुपक्ष चाहे कितना ही कमजोर हो और अपना पक्ष चाहे कितना ही सबल हो ऐसी अवस्थामें भी शत्रुपक्षको कमजोर नहीं समझना चाहिये और अपनेमें उपेक्षा उदासीनता आदिकी भावना किञ्चिन्मात्र भी नहीं आने देनी चाहिये। इसलिये सावधानीके लिये मैंने उनकी सेनाकी बात कही और अब अपनी सेनाकी बात कहता हूँ।दूसरा भाव यह है कि पाण्डवोंकी सेनाको देखकर दुर्योधनपर बड़ा प्रभाव पड़ा और उसके मनमें कुछ भय भी हुआ। कारण कि संख्यामें कम होते हुए भी पाण्डवसेनाके पक्षमें बहुतसे धर्मात्मा पुरुष थे और स्वयं भगवान् थे। जिस पक्षमें धर्म और भगवान् रहते हैं उसका सबपर बड़ा प्रभाव पड़ता है। पापीसेपापी दुष्टसेदुष्ट व्यक्तिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है। इतना ही नहीं पशुपक्षी वृक्षलता आदिपर भी उसका प्रभाव पड़ता है। कारण कि धर्म और भगवान् नित्य हैं। कितनी ही ऊँचीसेऊँची भौतिक शक्तियाँ क्यों न हों हैं वे सभी अनित्य ही। इसलिये दुर्योधनपर पाण्डवसेनाका बड़ा असर पड़ा। परन्तु उसके भीतर भौतिक बलका विश्वास मुख्य होनेसे वह द्रोणाचार्यको विश्वास दिलानेके लिये कहता है कि हमारे पक्षमें जितनी विशेषता है उतनी पाण्डवोंकी सेनामें नहीं है। अतः हम उनपर सहज ही विजय कर सकते हैं।