भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च।।1.8।।
।।1.8।।आप (द्रोणाचार्य) और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा? विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा।
।।1.8।। व्याख्या भवान् भीष्मश्च आप और पितामह भीष्म दोनों ही बहुत विशेष पुरुष हैं। आप दोनोंके समकक्ष संसारमें तीसरा कोई भी नहीं है। अगर आप दोनोंमेंसे कोई एक भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करे तो देवता यक्ष राक्षस मनुष्य आदिमें ऐसा कोई भी नहीं है जो कि आपके सामने टिक सके। आप दोनोंके पराक्रमकी बात जगत्में प्रसिद्ध ही है। पितामह भीष्म तो आबाल ब्रह्मचारी हैं और इच्छामृत्यु हैं अर्थात् उनकी इच्छाके बिना उन्हें कोई मार ही नहीं सकता। महाभारतयुद्धमें द्रोणाचार्य धृष्टद्युम्नके द्वारा मारे गये और पितामह भीष्मने अपनी इच्छासे ही सूर्यके उत्तरायण होनेपर अपने प्राणोंका त्याग कर दिया। कर्णश्च कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है। मुझे तो ऐसा विश्वास है कि वह अकेला ही पाण्डवसेनापर विजय प्राप्त कर सकता है। उसके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं कर सकता। ऐसा वह कर्ण भी हमारे पक्षमें है। कर्ण महाभारतयुद्धमें अर्जुनके द्वारा मारे गये। कृपश्च समितिञ्जयः कृपाचार्यकी तो बात ही क्या है वे तो चिरंजीवी हैं (टिप्पणी प0 8) हमारे परम हितैषी हैं और सम्पूर्ण पाण्डवसेनापर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यद्यपि यहाँ द्रोणाचार्य और भीष्मके बाद ही दुर्योधनको कृपाचार्यका नाम लेना चाहिये था परन्तु दुर्योधनको कर्णपर जितना विश्वास था उतना कृपाचार्यपर नहीं था। इसलिये कर्णका नाम तो भीतरसे बीचमें ही निकल पड़ा। द्रोणाचार्य और भीष्म कहीं कृपाचार्यका अपमान न समझ लें इसलिये दुर्योधन कृपाचार्यको संग्रामविजयी विशेषण देकर उनको प्रसन्न करना चाहता है। अश्वत्थामा ये भी चिरंजीवी हैं और आपके ही पुत्र हैं। ये बड़े ही शूरवीर हैं। इन्होंने आपसे ही अस्त्रशस्त्रकी विद्या सीखी है। अस्त्रशस्त्रकी कलामें ये बड़े चतुर हैं। विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च आप यह न समझें कि केवल पाण्डव ही धर्मात्मा हैं हमारे पक्षमें भी मेरा भाई विकर्ण बड़ा धर्मात्मा और शूरवीर है। ऐसे ही हमारे प्रपितामह शान्तनुके भाई बाह्लीकके पौत्र तथा सोमदत्तके पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा हैं। इन्होंने बड़ीबड़ी दक्षिणावाले अनेक यज्ञ किये हैं। ये बड़े शूरवीर और महारथी हैं। युद्धमें विकर्ण भीमके द्वारा और भूरिश्रवा सात्यकिके द्वारा मारे गये। यहाँ इन शूरवीरोंके नाम लेनेमें दुर्योधनका यह भाव मालूम देता है कि हे आचार्य हमारी सेनामें आप भीष्म कर्ण कृपाचार्य आदि जैसे महान् पराक्रमी शूरवीर हैं ऐसे पाण्डवोंकी सेनामें देखनेमें नहीं आते। हमारी सेनामें कृपाचार्य और अश्वत्थामा ये दो चिरंजीवी हैं जबकि पाण्डवोंकी सेनामें ऐसा एक भी नहीं है। हमारी सेनामें धर्मात्माओंकी भी कमी नहीं है। इसलिये हमारे लिये डरनेकी कोई बात नहीं है।