आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा।
असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे।।10.13।।
।।10.13।।अर्जुन बोले -- परम ब्रह्म? परम धाम और महान् पवित्र आप ही हैं। आप शाश्वत? दिव्य पुरुष? आदिदेव? अजन्मा और विभु (व्यापक) हैं -- ऐसा सबकेसब ऋषि? देवर्षि नारद? असित? देवल तथा व्यास कहते हैं और स्वयं आप भी मेरे प्रति कहते हैं।
।।10.13।। व्याख्या -- परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् -- अपने सामने बैठे हुए भगवान्की स्तुति करते हुए अर्जुन कहते हैं कि मेरे पूछनेपर जिसको आपने परम ब्रह्म (गीता 8। 3) कहा है? वह परम ब्रह्म आप ही हैं। जिसमें सब संसार स्थित रहता है? वह परम धाम अर्थात् परम स्थान आप ही हैं (गीता 9। 18)। जिसको पवित्रोंमें भी पवित्र कहते हैं -- पवित्राणां पवित्रं यः वह महान् पवित्र भी आप ही हैं।पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं ৷৷. स्वयं चैव ब्रवीषि मे -- ग्रन्थोंमें ऋषियोंने? (टिप्पणी प0 549.1) देवर्षि नारदने (टिप्पणी प0 549.2)? असित और उनके पुत्र देवल ऋषिने (टिप्पणी प0 549.3) तथा महर्षि व्यासजीने (टिप्पणी प0 549.4) आपको शाश्वत? दिव्य पुरुष? आदिदेव? अजन्मा और विभु कहा है।आत्माके रूपमें शाश्वत (गीता 2। 20)? सगुणनिराकारके रूपमें दिव्य पुरुष (गीता 8। 10)? देवताओँ और महर्षियों आदिके रूपमें आदिदेव (गीता 10। 2)? मूढ़लोग मेरेको अज नहीं जानते (गीता 7। 25) तथा असम्मूढ़लोग मेरेको अज जानते हैं (गीता 10। 3 ) -- इस रूपमें अज और मैं अव्यक्तरूपसे सारे संसारमें व्यापक हूँ (गीता 9। 4) -- इस रूपमें विभु स्वयं आपने मेरे प्रति कहा है।