वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि।।10.16।।
।।10.16।।जिन विभूतियोंसे आप इन सम्पूर्ण लोकोंको व्याप्त करके स्थित हैं? उन सभी अपनी दिव्य विभूतियोंका सम्पूर्णतासे वर्णन करनेमें आप ही समर्थ हैं।
।।10.16।। आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को अशेषत कहने के लिए योग्य हैं? जिन विभूतियों के द्वारा इन समस्त लोकों को आप व्याप्त करके स्थित हैं।।