आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान्।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी।।10.21।।
।।10.21।।(टिप्पणी प0 556.1) मैं अदितिके पुत्रोंमें विष्णु (वामन) और प्रकाशमान वस्तुओंमें किरणोंवाला सूर्य हूँ। मैं मरुतोंका तेज और नक्षत्रोंका अधिपति चन्द्रमा हूँ।
।।10.21।। मैं (बारह) आदित्यों में विष्णु और ज्योतियों में अंशुमान् सूर्य हूँ मैं (उनचास) मरुतों (वायु देवताओं) में मरीचि हूँ और नक्षत्रों में शशी (चन्द्रमा) हूँ।।
।।10.21।। व्याख्या -- आदित्यानामहं विष्णुः -- अदितिके धाता? मित्र आदि जितने पुत्र हैं? उनमें विष्णु अर्थात् वामन मुख्य हैं। भगवान्ने ही वामनरूपसे अवतार लेकर दैत्योंकी सम्पत्तिको दानरूपसे लिया और उसे अदितिके पुत्रों(देवताओँ) को दे दिया (टिप्पणी प0 556.2)।ज्योतिषां रविरंशुमान् -- चन्द्रमा? नक्षत्र? तारा? अग्नि आदि जितनी भी प्रकाशमान चीजें हैं? उनमें किरणोंवाला सूर्य मेरी विभूति है क्योंकि प्रकाश करनेमें सूर्यकी मुख्यता है। सूर्यके प्रकाशसे ही सभी प्रकाशमान होते हैं।मरीचिर्मरुतामस्मि -- सत्त्वज्योति? आदित्य? हरित आदि नामोंवाले जो उनचास मरुत हैं? उनका मुख्य तेज मैं हूँ। उस तेजके प्रभावसे ही इन्द्रके द्वारा दितिके गर्भके सात टुकड़े करनेपर और उन सातोंके फिर सातसात टुकड़े करनेपर भी वे मरे नहीं प्रत्युत एकसे उनचास हो गये।नक्षत्राणामहं शशी -- अश्विनी? भरणी? कृत्तिका आदि जो सत्ताईस नक्षत्र हैं? उन सबका अधिपति चन्द्रमा मैं हूँ।इन विभूतियोंमें जो विशेषता -- महत्ता है? वह वास्तवमें भगवान्की है।[इस प्रकरणमें जिन विभूतियोंका वर्णन आया है? उनको भगवान्ने विभूतिरूपसे ही कहा है? अवताररूपसे नहीं जैसे -- अदितिके पुत्रोंमें वामन मैं हूँ (10। 21)? शस्त्रधारियोंमें राम मैं हूँ (10। 31)? वृष्णिवंशियोंमें वासुदेव (कृष्ण) और पाण्डवोंमें धनञ्जय (अर्जुन) मैं हूँ (10। 37) इत्यादि। कारण कि यहाँ प्रसङ्ग विभूतियोंका है।]
।।10.21।। मैं आदित्यों में विष्णु हूँ वैदिक परम्परा में आदित्यों का संख्या कहीं पाँच तो कहीं छ बतायी गई है। ये अदिति के पुत्र थे। तत्पश्चात् पारम्परिक विश्वास के अनुसार इनकी संख्या बारह मानी गई? जो बारह मासों के सूचक हैं। विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु नामक एक आदित्य है? जो अन्य आदित्यों की अपेक्षा श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण है।मैं ज्योतियों में सूर्य हूँ आधुनिक भौतिक विज्ञान भी सूर्य को समस्त ऊर्जाओं के स्रोत के रूप में स्वीकार करता है। अत भगवान् के कथन का अभिप्राय स्वत स्पष्ट हो जाता है। जहाँ कहीं भी कोई ऊर्जा व्यक्त होती है? उसका स्रोत आत्मा ही है।मैं वायु देवताओं में मरीचि हूँ वायु के अधिष्ठाता देवता मरुत कहलाते हैं? जिनकी संख्या उनचास कही गई है। इन में मरीचि नामक मरुत मैं हूँ। मरुतगण रुद्र पुत्र माने गये हैं। ऋग्वेद के अनुसार मरीचि उनमें प्रमुख है। मैं नक्षत्रों में चन्द्रमा हूँ भारतीय खगोलशास्त्र में जिस अर्थ में नक्षत्र शब्द प्रयुक्त किया जाता है? वह चन्द्रमा के मार्ग के तीन तारों का सूचक है। इस दृष्टि से? विश्व में चन्द्रमा का यह मार्ग भगवान् की विभूति की ही एक अभिव्यक्ति है और चन्द्रमा उनमें सर्वश्रेष्ठ है? क्योंकि वह नियन्त्रक और नियामक है तथा तेज में भी अपूर्व है।परन्तु हम नक्षत्र शब्द से सामान्य प्रचलित अर्थ को भी स्वीकार कर सकते हैं? जिसके अनुसार रात्रि के समय आकाश में जड़े हुए छोटेछोटे चमकते हुए असंख्य तारे ही नक्षत्र हैं। कुछ व्याख्याकार एक पग आगे जाकर कहते हैं कि नक्षत्र शब्द रात्रि के समस्त प्रकाशों का सूचक है। चिन्तन के लिए उपयोगी होने से यह अर्थ भी स्वीकार्य हो सकता है। रात्रि के समय एक छोटी सी कुटिया से लेकर संसद भवन तक को चमकाने वाले चन्द्रमा का प्रकाश शीतल शान्तिप्रद और गौरवमय होता है। ठीक उसी प्रकार आत्मा का प्रकाश भी अतुलनीय है।यहाँ बाइस श्लोकों की इस मालिका में? भगवान् श्रीकृष्ण कुल पचहत्तर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। उनका उद्देश्य ज्ञानयोग के मार्ग पर चलने वाले साधक की सहायता करना है। यहाँ उक्त उपासनाओं के द्वारा साधकगण अपने मनबुद्धि को सुगठित करके चित्त की एकाग्रता प्राप्त कर सकते हैं। ध्यान के लिए उपयोगी ये पचहत्तर अभ्यास हैं