अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्।।10.29।।
।।10.29।।नागोंमें अनन्त (शेषनाग) और जलजन्तुओंका अधिपति वरुण मैं हूँ। पितरोंमें अर्यमा और,शासन करनेवालोंमें यमराज मैं हूँ।
।।10.29।। मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।
।।10.29।। व्याख्या -- अनन्तश्चास्मि नागानाम् -- शेषनाग सम्पूर्ण नागोंके राजा हैं (टिप्पणी प0 560)। इनके एक हजार फण हैं। ये क्षीरसागरमें सदा भगवान्की शय्या बनकर भगवान्को सुख पहुँचाते रहते हैं। ये अनेक बार भगवान्के साथ अवतार लेकर उनकी लीलामें शामिल हुए हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।वरुणो यादसामहम् -- वरुण सम्पूर्ण जलजन्तुओंके तथा जलदेवताओंके अधिपति हैं और भगवान्के भक्त हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।पितृ़णामर्यमा चास्मि -- कव्यवाह? अनल? सोम आदि सात पितृगण हैं। इन सबमें अर्यमा नामवाले पितर मुख्य हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।यमः संयमतामहम् -- प्राणियोंपर शासन करनेवाले राजा आदि जितने भी अधिकारी हैं? उनमें यमराज मुख्य हैं। ये प्राणियोंको उनके पापपुण्योंका फल भुगताकर शुद्ध करते हैं। इनका शासन न्याय और धर्मपूर्वक होता है। ये भगवान्के भक्त और लोकपाल भी हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।इन विभूतियोंमें जो विलक्षणता दीखती है? वह इनकी व्यक्तिगत नहीं है। वह तो भगवान्से ही आयी है और भगवान्की ही है। अतः इनमें भगवान्का ही चिन्तन होना चाहिये।
।।10.29।। मैं नागों में शेषनाग (अनन्त) हूँ अनेक फणों वाले सर्प नाग कहलाते हैं। उन नागों में सहस्र फनों वाले शेषनाग को भगवान् विष्णु की शय्या कहा गया है जिस पर वे अपनी योगनिद्रा में विश्राम या शयन करते हैं। यहाँ श्रीकृष्ण कहते हैं कि? अनेक फणों वाले नागों में? वे सर्वाधिक शक्तिशाली और दिव्य नाग हैं? क्योंकि वे एकमात्र अधिष्ठान है जिस पर सृष्टकर्ता ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु विश्राम और कार्य करते हैं।मैं जल देवताओं में वरुण हूँ पंच महाभूतों में चौथे तत्त्व जल का अधिष्ठाता देवता वरुण है। वैदिक काल में दृश्य जगत् की प्राकृतिक शक्तियों को दैवी आकृति प्रदान कर उनकी पूजा और उपासना की जाती थी। यह तो काफी समय पश्चात् हमने देवताओं के मानवीकरण की पौराणिक परम्परा प्रारम्भ की और फिर हम धार्मिक मतभेदों की कीचड़ और सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों में फँस गये। जेरुसलम के मसीहा? वृन्दावन के गोपबाल और मक्का के पैगम्बर के अज्ञानी भक्त आपस में लड़ने लगे। वरुण का शरीर अर्धमत्स्य और अर्धमनुष्य का वर्णन किया गया है जो प्राय अरनाल्ड के मरमन (मत्स्यपुरुष) के समान है वरुण समुद्र का शासक और जल का अधिष्ठाता देवता है।मैं पितरों में अर्यमा हूँ हिन्दू धर्म में? मृत्यु भी? जीवन का ही एक अनुभव है। इसमें सूक्ष्म शरीर सदैव के लिए अपने वर्तमान निवास स्थान रूपी स्थूल देह को त्याग कर चला जाता है। इस सूक्ष्म शरीर (या जीव) का अपना अलग अस्तित्व बना रहता है? जिसे पितर कहते हैं।ये पितर (अथवा प्रेतात्माएं) एक साथ किसी लोक विशेष में रहते हैं? जिसे पितृलोक कहा जाता है। इसके पूर्व हम बारह आदित्यों के संबंध में वैदिक सिद्धांत को देख चुके हैं? जो बारह महीनों के अधिष्ठाता हैं। उनमें से एक अर्यमा नामक आदित्य को इस पितृलोक का शासक कहा गया है।मैं नियामकों में यम हूँ यमराज मृत्यु के देवता हैं। भारत में? हम भयंकरता उदासी और दुखान्त को भी पूजते हैं? क्योंकि हम जानते हैं कि ईश्वर शुभ और अशुभ आनन्दप्रद और दुखप्रद सभी वस्तुओं का अधिष्ठान है। हम समझौते के किसी ऐसे सिद्धांत से सन्तुष्ट नहीं होते? जिसमें हम ईश्वर का उन वस्तुओं से कोई संबंध स्वीकार नहीं करते? जो हमें अप्रिय हों।हमें प्रिय प्रतीत हो या न हो? मृत्यु तत्त्व ही हमारे जीवन का नियन्त्रक और नियामक है। मृत्यु ही? प्रत्येक क्षण? रचनात्मक विकास के लिए प्रगतिशील क्षेत्र तैयार करती है। युवावस्था की अभिव्यक्ति के लिए बाल्यावस्था का अन्त होना आवश्यक है। महाविद्यालय में प्रवेश पाने के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालय को त्यागना पड़ता है। प्रगति अपने आप में जीवन का मात्र आंशिक चित्र और जीवन की सम्पूर्ण गति का एकांगी दर्शन है। प्रत्येक विकास के पूर्व नाश अवश्य होता है। इस प्रकार? नाश का रचनात्मक प्रगति में योगदान मृत्यु की सृजनात्मक कला कहलाती है।किसी भौतिक वस्तु की वर्तमान अवस्था का नाश किये बिना नवीन वस्तु की निर्मिति नहीं की जा सकती। भौतिक जगत् के इस नियम को समझने से ही हम इस युक्तिसंगत निष्कर्ष पर पहुँचते हैं। निरीक्षित नियम यह है कि कोई दो वस्तुएँ एक ही समय एक ही स्थान पर साथसाथ नहीं रह सकती हैं। जब एक चित्रकार पट पर फूल का चित्र बना रहा होता है? तब वह न केवल विभिन्न रंगों का प्रयोग ही करता है? वरन् उसकी रचनात्मक कला निरन्तर उस पट के सतह की पूर्वावस्था को नष्ट भी करती जाती है। इस प्रकार? जब जीवन को उसकी सम्पूर्णता में देखा जाता है? तब ज्ञात होता है कि मृत्यु के देवता का भी उतना ही महत्व है? जितना कि सृष्टि के देवता का।सृष्टि के साथसाथ उसी गति से यदि मृत्यु बुद्धिमत्तापूर्वक कार्य नहीं कर रही होती? तो जगत् में वस्तुओं की असीम और अनियन्त्रित बाढ़ आ गई होती। उस स्थिति में मात्र वस्तुओं की संख्या एवं परिमाण के कारण ही जीवन असंभव हो गया होता। यदि मृत्यु नहीं होती? तो हमारे पूर्व के असंख्य पीढ़ियों के प्रपितामह आदि अभी भी हमारे दो कमरों वाले घरों में रह रहे होते जब कुछ ही मात्रा में जनसंख्या में वृद्धि होने पर प्रकृति का सन्तुलन और जगत् की राजनीतिक शान्ति अस्तव्यस्त हो जाती है? यदि सृष्टिकर्ता के समान मृत्यु देवता भी कार्य नहीं कर रहे होते? तो जगत् की क्या स्थिति होती निश्चय ही? सभी नियामकों में यमराज प्रमुख्ा हैं और यह दिया हुआ उदाहरण अत्यन्त उपयुक्त एवं अनन्य है।भगवान् आगे कहते हैं
10.29 Among snakes I am Ananta, and Varuna among gods of the waters. Among the manes I am Aryama, and among the maintainers of law and order I am Yama (King of death).
10.29 I am Ananta among the Nagas; I am Varuna among water-deities; Aryaman among the Manes I am; I am Yama among the governors.
10.29. Of the snakes, I am Ananta; of the water-beings (water-deities), I am varuna; of the manes, I am Aryaman; of the controllers, I am Yama (the Death-god).
10.29 अनन्तः Ananta? च and? अस्मि (I) am? नागानाम् among Nagas? वरुणः Varuna? यादसाम् among watergods? अहम् I? पितृ़णाम् among the Pitris or ancestors? अर्यमा Aryaman? च and? अस्मि (I) am? यमः Yama? संयमताम् among governors? अहम् I.Commentary Ananta is the king of hooded serpents or cobras. He is firecoloured.Varuna is the king of the watergods.Waterdeities The gods connected with waters.Aryaman is the king of the manes.I am Yama? the witness of the acts of all living beings? who keeps account of the good and bad actions of the people.
10.29 Naganam, among snakes, of a particular species of snakes; asmi, I am Ananta, the King of snakes. And Varuna, the King yadasam, of the gods of the waters. Pitrnam, among the manes; I am the King of the manes, named Aryama. And samyamatam, among the maintainers of law and order I am Yama.
10.29 See Comment under 10.42
10.26 - 10.29 Of trees I am Asvattha which is worthy of worship. Of celestial seers I am Narada. Kamadhuk is the divine cow. I am Kandarpa, the cause of progeny. Sarpas are single-headed snakes while Nagas are many-headed snakes. Aatic creatures are known as Yadamsi. Of them I am Varuna. Of subdures, I am Yama, the son of the sun-god.
Among the inhabitants of the water (yadasam) I am Varuna. Among those who punish (samyamatam) I am Yama.
Of Nagas or non-poisonous snakes, Lord Krishna vibhuti or divine, transcendental opulence is Ananta the divine serpent upon whose head unlimited universes revolve resembling the size of a mustard seed. Of aquatics He is Varuna the ruler of the waters. Of the manes or ancestors His vibhuti is Aryaman the king of the manes and of chastisers or those who mete out punishment Lord Krishnas vibhuti is Yamaraja the demigod in charge of death and punishment after death.
Lord Krishna reveals that His vibhuti or divine, transcendental opulence among naganam is Ananta. Naganam means non-poisonous serpents with many heads. The word yadasam means aquatics or inhabitants of water and of punishers and chastisers His vibhuti is Yamaraja.
Lord Krishna reveals that His vibhuti or divine, transcendental opulence among naganam is Ananta. Naganam means non-poisonous serpents with many heads. The word yadasam means aquatics or inhabitants of water and of punishers and chastisers His vibhuti is Yamaraja.
Anantashchaasmi naagaanaam varuno yaadasaamaham; Pitreenaamaryamaa chaasmi yamah samyamataamaham.
anantaḥ—Anant; cha—and; asmi—I am; nāgānām—amongst snakes; varuṇaḥ—the celestial god of the ocean; yādasām—amongst aquatics; aham—I; pitṝīṇām—amongst the departed ancestors; aryamā—Aryama; cha—and; asmi—am; yamaḥ—the celestial god of death; sanyamatām—amongst dispensers of law; aham—I