पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।10.31।।
।।10.31।।पवित्र करनेवालोंमें वायु और शास्त्रधारियोंमें राम मैं हूँ। जलजन्तुओंमें मगर मैं हूँ। बहनेवाले स्रोतोंमें गङ्गाजी मैं हूँ।
।।10.31।। व्याख्या -- पवनः पवतामस्मि -- वायुसे ही सब चीजें पवित्र होती हैं। वायुसे ही नीरोगता आती है। अतः भगवान्ने पवित्र करनेवालोंमें वायुको अपनी विभूति बताया है।रामः शस्त्रभृतामहम् -- ऐसे तो राम अवतार हैं? साक्षात् भगवान् हैं? पर जहाँ शस्त्रधारियोंकी गणना होती है? उन सबमें राम श्रेष्ठ हैं। इसलिये भगवान्ने रामको अपनी विभूति बताया है।झषाणां मकरश्चास्मि -- जलजन्तुओंमें मगर सबसे बलवान् है। इसलिये जलचरोंमें मगरको भगवान्ने अपनी विभूति बताया है।स्रोतसामस्मि जाह्नवी -- प्रवाहरूपसे बहनेवाले जितने भी नद? नदी? नाले? झरने हैं? उन सबमें गङ्गाजी श्रेष्ठ हैं। ये भगवान्की खास चरणोदक हैं। गङ्गाजी अपने दर्शन? स्पर्श आदिसे दुनियाका उद्धार करनेवाली हैं। मरे हुए मनुष्योंकी अस्थियाँ गङ्गाजीमें डालनेसे उनकी सद्गति हो जाती है। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।वास्तवमें इन विभूतियोंकी मुख्यता न मानकर भगवान्की ही मुख्यता माननी चाहिये। कारण कि इन सबमें जो विशेषता -- महत्ता देखनेमें आती है? वह भगवान्से ही आयी है।सत्रहवें श्लोकमें अर्जुनके दो प्रश्न थे -- पहला? भगवान्को जाननेका (मैं आपको कैसे जानूँ) और दूसरा? जाननेके उपायका (किनकिन भावोंमें मैं आपका चिन्तन करूँ)। इन दोनोंमेंसे उपाय तो है -- विभूतियोंमें भगवान्का चिन्तन करना और उस चिन्तनका फल (परिणाम) होगा -- सब विभूतियोंके मूलमें भगवान्को तत्त्वसे जानना। जैसे? शस्त्रधारियोंमें श्रीरामको और वृष्णियोंमें वासुदेव(अपने) को भगवान्ने अपनी विभूति बताया। यह तो उस समुदायमें विभूतिरूपसे श्रीरामका और वासुदेवका चिन्तन करनेके लिये बताया और उनके चिन्तनका फल होगा -- श्रीरामको और वासुदेवको तत्त्वसे भगवान् जान जाना। यह चिन्तन करना और भगवान्को तत्त्वसे जानना सभी विभूतियोंके विषयमें समझना चाहिये।संसारमें जहाँकहीं भी जो कुछ विशेषता? विलक्षणता? सुन्दरता दीखती है? उसको वस्तुव्यक्तिकी माननेसे फँसावट होती है अर्थात् मनुष्य उस विशेषता आदिको संसारकी मानकर उसमें फँस जाता है। इसलिये भगवान्ने यहाँ मनुष्यमात्रके लिये यह बताया है कि तुमलोग उस विशेषता सुन्दरता आदिको वस्तुव्यक्तिकी मत मानो? प्रत्युत मेरी और मेरेसे ही आयी हुई मानो। ऐसा मानकर मेरा चिन्तन करोगे तो तुम्हारा संसारका चिन्तन तो छूट जायगा और उस जगह मैं आ जाऊँगा। इसका परिणाम यह होगा कि तुमलोग मेरेको तत्त्वसे जान जाओगे। मेरेको तत्त्वसे जाननेपर मेरेमें तुम्हारी दृढ़ भक्ति हो जायगी (गीता 10। 7),