बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।।10.35।।
।।10.35।।गायी जानेवाली श्रुतियोंमें बृहत्साम और वैदिक छन्दोंमें गायत्री छन्द मैं हूँ। बारह महीनोंमें मार्गशीर्ष और छः ऋतुओंमें वसन्त मैं हूँ।
।।10.35।। व्याख्या -- बृहत्साम तथा साम्नाम् -- सामवेदमें बृहत्साम नामक एक गीति है। इसके द्वारा इन्द्ररूप परमेश्वरकी स्तुति की गयी है। अतिरात्रयागमें यह एक पृष्ठस्तोत्र है। सामवेदमें सबसे श्रेष्ठ होनेसे इस बृहत्सामको भगवान्ने अपनी विभूति बताया है (टिप्पणी प0 564)।गायत्री छन्दसामहम् -- वेदोंकी जितनी छन्दोबद्ध ऋचाएँ हैं? उनमें गायत्रीकी मुख्यता है। गायत्रीको वेदजननी कहते हैं क्योंकि इसीसे वेद प्रकट हुए हैं। स्मृतियों और शास्त्रोंमें गायत्रीकी बड़ी भारी महिमा गायी गयी है। गायत्रीमें स्वरूप? प्रार्थना और ध्यान -- तीनों परमात्माके ही होनेसे इससे परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति होती है। इसलिये भगवान्ने अपनी विभूति बताया है।मासानां मार्गशीर्षोऽहम् -- जिस अन्नसे सम्पूर्ण प्रजा जीवित रहती है? उस (वर्षासे होनेवाले) अन्नकी उत्पत्ति मार्गशीर्ष महीनेमें होती है। इस महीनेमें नये अन्नसे यज्ञ भी किया जाता है। महाभारतकालमें नया वर्ष मार्गशीर्षसे ही आरम्भ होता था। इन विशेषताओंके कारण भगवान्ने मार्गशीर्षको अपनी विभूति बताया है।ऋतूनां कुसुमाकरः -- वसन्त ऋतुमें बिना वर्षाके ही वृक्ष? लता आदि पत्रपुष्पोंसे युक्त हो जाते हैं। इस ऋतुमें न अधिक गरमी रहती है और न अधिक सरदी। इसलिये भगवान्ने वसन्त ऋतुको अपनी विभूति कहा है।इन सब विभूतियोंमें जो महत्ता? विशेषता दीखती है? वह केवल भगवान्की ही है। अतः चिन्तन केवल भगवान्का ही होना चाहिये।