मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च।।10.9।।
।।10.9।।।(टिप्पणी प0 544) मेरेमें चित्तवाले? मेरेमें प्राणोंको अर्पण करनेवाले भक्तजन आपसमें मेरे गुण? प्रभाव आदिको जानते हुए और उनका कथन करते हुए ही नित्यनिरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं और मेरेमें प्रेम करते हैं।
।।10.9।। मुझमें ही चित्त को स्थिर करने वाले और मुझमें ही प्राणों (इन्द्रियों) को अर्पित करने वाले भक्तजन? सदैव परस्पर मेरा बोध कराते हुए? मेरे ही विषय में कथन करते हुए सन्तुष्ट होते हैं और रमते हैं।।