रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं
महाबाहो बहुबाहूरुपादम्।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं
दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाऽहम्।।11.23।।
।।11.23।।हे महाबाहो आपके बहुत मुखों और नेत्रोंवाले? बहुत भुजाओं? जंघाओं और चरणोंवाले? बहुत उदरोंवाले? बहुत विकराल दाढ़ोंवाले महान् रूपको देखकर सब प्राणी व्यथित हो रहे हैं तथा मैं भी व्यथित हो रहा हूँ।
।।11.23।। हे महाबाहो आपके बहुत मुख तथा नेत्र वाले? बहुत बाहु? उरु (जंघा) तथा पैरों वाले? बहुत उदरों वाले तथा बहुतसी विकराल दाढ़ों वाले महान् रूप को देखकर सब लोग व्यथित हो रहे हैं और उसी प्रकार मैं भी (व्याकुल हो रहा हूँ)।।
।।11.23।। व्याख्या -- [पन्द्रहवेंसे अठारहवें श्लोकतक विश्वरूपमें देवरूपका? उन्नीसवेंसे बाईसवें श्लोकतक उग्ररूपका और तेईसवेंसे तीसवें श्लोकतक अत्यन्त उग्ररूपका वर्णन हुआ है।]बहुवक्त्रनेत्रम् -- आपके मुख एकदूसरेसे नहीं मिलते। कई मुख सौम्य हैं और कई विकराल हैं। कई मुख छोटे हैं और कई मुख बड़े हैं। ऐसे ही आपके जो नेत्र हैं? वे भी सभी एक समान नहीं दीख रहे हैं। कई नेत्र सौम्य हैं और कई विकराल हैं। कई नेत्र छोटे हैं? कई बड़े हैं? कई लम्बे हैं? कई चौड़े हैं? कई गोल हैं? कई टेढ़े हैं? आदिआदि।बहुबाहूरुपादम् -- हाथोंकी बनावट? वर्ण? आकृति और उनके कार्य विलक्षणविलक्षण हैं। जंघाएँ विचित्रविचित्र हैं और चरण भी तरहतरहके हैं।बहूदरम् -- पेट भी एक समान नहीं हैं। कोई बड़ा? कोई छोटा? कोई भयंकर आदि कई तरहके पेट हैं।बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम् -- मुखोंमें बहुत प्रकारकी विकराल दाढ़ें हैं। ऐसे महान् भयंकर? विकराल रूपको देखकर सब प्राणी व्याकुल हो रहे हैं और मैं भी व्याकुल हो रहा हूँ।इस श्लोकसे पहले कहे हुए श्लोकोंमें भी अनेक मुखों? नेत्रों आदिकी और सब लोगोंके भयभीत होनेकी बात आयी है। अतः अर्जुन एक ही बात बारबार क्यों कह रहे हैं इसका कारण है कि -- (1) विराट्रूपमें अर्जुनकी दृष्टिके सामने जोजो रूप आता है? उसउसमें उनको नयीनयी विलक्षणता और दिव्यता दीख रही है।(2) विराट्रूपको देखकर अर्जुन इतने घबरा गये? चकित हो गये? चकरा गये? व्यथित हो गये कि उनको यह खयाल ही नहीं रहा कि मैंने क्या कहा है और मैं क्या कह रहा हूँ।(3) पहले तो अर्जुनने तीनों लोकोंके व्यथित होनेकी बात कही थी? पर यहाँ सब प्राणियोंके साथसाथ स्वयंके भी व्यथित होनेकी बात कहते हैं।(4) एक बातको बारबार कहना अर्जुनके भयभीत और आश्चर्यचकित होनेका चिह्न है। संसारमें देखा भी जाता है कि जिसको भय? हर्ष? शोक? आश्चर्य आदि होते हैं? उसके मुखसे स्वाभाविक ही किसी शब्द या वाक्यका बारबार उच्चारण हो जाता है जैसे -- कोई साँपको देखकर भयभीत होता है तो वह बारबार साँप साँप साँप ऐसा कहता है। कोई सज्जन पुरुष आता है तो हर्षमें भरकर कहते हैं -- आइये आइये आइये कोई प्रिय व्यक्ति मर जाता है तो शोकाकुल होकर कहते हैं -- मैं मारा गया मारा गया घरमें अँधेरा हो गया? अँधेरा हो गया अचानक कोई आफत आ जाती है तो मुखसे निकलता है -- मैं मरा मरा मरा ऐसे ही यहाँ विश्वरूपदर्शनमें अर्जुनके द्वारा भय और हर्षके कारण कुछ शब्दों और वाक्योंका बारबार उच्चारण हुआ है। अर्जुनने भय और हर्षको स्वीकार भी किया है -- अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे (11। 45)। तात्पर्य है कि भय? हर्ष? शोक आदिमें एक बातको बारबार कहना पुनरुक्तिदोष नहीं माना जाता।
।।11.23।। See commentary under 11.24
11.23 O mighty-armed One, seeing Your immense form with many mouths and eyes, having numerous arms, thighs and feet, with many bellies, and fearful with many teeth, the creatures are struck with terror, and so am I.
11.23 Having seen Thy immeasurable form with many mouths and eyes, O mighty-armed, with many arms, thighs and feet, with many stomachs and fearful with many teeth the worlds are terrified and so am I.
11.23. O Mighty-armed One ! Having seen Your mighty form that has many faces and eyes, many arms, thighs and feet, and many bellies, and is terrible with many tusks; the worlds are frightened and so also myself.
11.23 रूपम् form? महत् immeasurable? ते Thy? बहुवक्त्रनेत्रम् with many mouths and eyes? महाबाहो O,mightyarmed? बहुबाहूरुपादम् with many arms? thighs and feet? बहूदरम् with many stomachs. बहुदंष्ट्राकरालम् fearful with many teeth? दृष्ट्वा having seen? लोकाः the worlds? प्रव्यथिताः are terrified? तथा also? अहम् I.Commentary Lokah The worlds -- all living beings in the world. Here is the cause of my fear. Arjuna describes below the nature of the Cosmic Form which has caused terror in his heart.
11.23 Mahabaho, O mighty-armed One; drstva, seeing; te, Your; mahat, immence, very vast; upam, form of this kind; bahu-vaktra-netram, with many mouths and eyes; bahu-bahu-uru-padam, having many arms, thighs and feet; and further, bahu-udaram, with many bellies; and bahu-damstra-karalam, fearful with many teeth; lokah, the creatures in the world; are pravya-thitah, struck with terror; tatha, and so also; am even aham, I. The reason of that is this:
11.23 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.
11.23 Beholding Your mighty form, as described earlier, which is an exceedingly terrifying figure because of the large teeth - all the worlds, described earlier and containing three kinds of beings, friendly, antagonistic and neutral, and I myself too have become panic-stricken.
No commentary by Sri Visvanatha Cakravarti Thakur.
Having seen Lord Krishnas almighty omnipotent visvarupa or divine universal form of terrible visage with unlimited faces, arms, bodies and mouths looking extremely fierce all the worlds are awe struck with fear and Arjuna states that he is also.
The words bahu-damstra-karalam mean innumerable terrible teeth which was terrifying in appearance. The word lokah or worlds refers to the three types of beings inhabiting these worlds. Those who are benevolent, those who are inimical and those who are neutral. Almost all of them just like Arjuna were trembling in fright at the ferocity of Lord Krishnas visvarupa or divine universal form.
The words bahu-damstra-karalam mean innumerable terrible teeth which was terrifying in appearance. The word lokah or worlds refers to the three types of beings inhabiting these worlds. Those who are benevolent, those who are inimical and those who are neutral. Almost all of them just like Arjuna were trembling in fright at the ferocity of Lord Krishnas visvarupa or divine universal form.
Roopam mahat te bahuvaktranetramMahaabaaho bahubaahoorupaadam; Bahoodaram bahudamshtraakaraalamDrishtwaa lokaah pravyathitaastathaa’ham.
rūpam—form; mahat—magnificent; te—your; bahu—many; vaktra—mouths; netram—eyes; mahā-bāho—mighty-armed Lord; bahu—many; bāhu—arms; ūru—thighs; pādam—legs; bahu-udaram—many stomachs; bahu-danṣhṭrā—many teeth; karālam—terrifying; dṛiṣhṭvā—seeing; lokāḥ—all the worlds; pravyathitāḥ—terror-stricken; tathā—so also; aham—I