आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो
नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं
न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्।।11.31।।
।।11.31।।मुझे यह बताइये कि उग्ररूपवाले आप कौन हैं हे देवताओंमें श्रेष्ठ आपको नमस्कार हो। आप प्रसन्न होइये। आदिरूप आपको मैं तत्त्वसे जानना चाहता हूँ क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्तिको नहीं जानता।
।।11.31।। (कृपया) मेरे प्रति कहिये? कि उग्ररूप वाले आप कौन हैं हे देवों में श्रेष्ठ आपको नमस्कार है? आप प्रसन्न होइये। आदि स्वरूप आपको मैं (तत्त्व से) जानना चाहता हूँ? क्योंकि आपकी प्रवृत्ति (अर्थात् प्रयोजन को) को मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।।