यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि
विहारशय्यासनभोजनेषु।
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं
तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम्।।11.42।।
।।11.42।। और? हे अच्युत जो आप मेरे द्वारा हँसी के लिये बिहार? शय्या? आसन और भोजन के समय अकेले में अथवा अन्यों के समक्ष भी अपमानित किये गये हैं? उन सब के लिए अप्रमेय स्वरूप आप से मैं क्षमायाचना करता हूँ।।
Lord Krishna is addressed as acyuta meaning He who is infallible. The word ekah refers to Him being the one and only, the best of all beings. It also denotes the knower of all things eka eva karoti yat which means as He alone does.