श्री भगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च।।11.5।।
।।11.5।। श्रीभगवान् ने कहा -- हे पार्थ मेरे सैकड़ों तथा सहस्रों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति वाले दिव्य रूपों को देखो।।
Lord Krishna is instructing to behold His all encompassing, all sustaining transcendental visvarupa or divine universal form in hundreds of thousands of unique transcendental manifestations. The word d?vy?ni means divine denoting non-material spiritual colours and forms never seen before.