सञ्जय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा
स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा।।11.50।।
।।11.50।।सञ्जय बोले -- वासुदेवभगवान्ने अर्जुनसे ऐसा कहकर फिर उसी प्रकारसे अपना रूप (देवरूप) दिखाया और महात्मा श्रीकृष्णने पुनः सौम्यवपु (द्विभुजरूप) होकर इस भयभीत अर्जुनको आश्वासन दिया।
।।11.50।। संजय ने कहा -- भगवान् वासुदेव ने अर्जुन से इस प्रकार कहकर? पुन अपने (पूर्व) रूप को दर्शाया? और फिर? सौम्यरूप महात्मा श्रीकृष्ण ने इस भयभीत अर्जुन को आश्वस्त किया।।
।।11.50।। व्याख्या -- इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूपं दर्शयामास भूयः -- अर्जुनने जब भगवान्से चतुर्भुजरूप होनेके लिये प्रार्थना की? तब भगवान्ने कहा कि मेरे इस विश्वरूपको देखकर तू व्यथित और भयभीत मत हो। तू प्रसन्न मनवाला होकर मेरे इस रूपको देख (11। 49)। भगवान्के इसी कथनको सञ्जयने यहाँ इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा पदोंसे कहा है।तथा कहनेका तात्पर्य है कि जिस प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अपना विश्वरूप दिखाया था? उसी प्रकार कृपाके परवश होकर भगवान्ने अर्जुनको चतुर्भुजरूप दिखाया। इस चतुर्भुजरूपको देखनेमें अर्जुनकी कोई साधना हो? योग्यता हो -- यह बात नहीं है? प्रत्युत भगवान्की कृपाहीकृपा है।भूयः कहनेका तात्पर्य है? जिस देवरूप(चतुर्भुजरूप) को अर्जुनने विश्वरूपके अन्तर्गत देखा था (11। 15? 17) और जिसे दिखानेके लिये अर्जुनने प्रार्थना की थी (11। 45 46)? वही रूप भगवान्ने फिर दिखाया।आश्वासयामास च भीतमेनं भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा -- भगवान् श्रीकृष्णने अर्जुनको पहले चतुर्भुजरूप दिखाया। फिर अर्जुनकी प्रसन्नताके लिये महात्मा भगवान् श्रीकृष्ण पुनः द्विभुजरूप(मनुष्यरूप) से प्रकट हो गये और उन्होंने विश्वरूपको देखनेसे भयभीत हुए अर्जुनको आश्वासन दिया।भगवान् श्रीकृष्ण द्विभुज थे या चतुर्भुज इसका उत्तर है कि भगवान् हरदम द्विभुजरूपसे ही रहते थे? पर समयसमयपर जहाँ उचित समझते थे? वहाँ चतुर्भुजरूप हो जाते थे।दसवें और ग्यारहवें अध्यायमें भगवान्ने अपनी विभूतियोंका वर्णन करनेमें भी अपनी महत्ता? प्रभाव सामर्थ्यको बताया है और अपने अत्यन्त विलक्षण विश्वरूपको दिखानेमें भी अपने प्रभावको बताया है। अगर मनुष्य भगवान्के ऐसे महान् प्रभावको जान ले अथवा मान ले? तो उसका संसारमें आकर्षण नहीं रहे। वह सदाके लिये संसारबन्धनसे छूट जाय।अर्जुनपर भगवान्की कितनी अद्भुत कृपा है कि भगवान्ने पहले विश्वरूप दिखाया? फिर देवरूप (चतुर्भुजरूप) दिखाया और फिर मानुषरूप (द्विभुजरूप) हो गये। इसके साथसाथ भगवान्ने हमलोगोंपर भी कितनी अलौकिक विलक्षण कृपा की है कि जहाँकहीं जिस किसी विशेषताको लेकर हमारा मन चला जाय? वहीं हम भगवान्का चिन्तन कर सकते हैं और भगवान्के विश्वरूपका पठनपाठन? चिन्तन कर सकते हैं। इस भयंकर समयमें हमें भगवान्की विभूतियों तथा विश्वरूपके चिन्तन आदिका जो मौका मिला है? इसमें हमारा उद्योग? योग्यता कारण नहीं है? प्रत्युत भगवान्की कृपा ही कारण है। भगवान्की इस कृपाको देखकर,हमें प्रसन्न हो जाना चाहिये। इन विभूतियोंको सुनने और विश्वरूपके चिन्तनस्मरणका मौका तो उस समय भी सञ्जय आदि बहुत थोड़े लोगोंको ही मिला था। वही मौका आज हमें प्राप्त हुआ है। अतः ऐसे मौकेको व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिये। सम्बन्ध -- भगवान्ने मनुष्यरूप होकर जब अर्जुनको आश्वासन दिया? तब अर्जुन बोले --
।।11.50।। यहाँ संजय अन्ध वृद्ध राजा से इस बात की पुष्टि करता है कि भगवान् ने अपने दिये हुए वचन के अनुसार पुन सौम्य रूप को धारण किया। वासुदेव शब्द से यह स्पष्ट करते हैं कि पूर्व का रूप कौन सा था वह रूप जिसमें श्रीकृष्ण ने वसुदेव के घर जन्म लिया था। भगवान् ने पुन? अर्जुन के परिचित मित्र और गोपियों के घनश्याम कृष्ण का सौम्य और प्रिय रूप धारण किया। भयभीत अर्जुन को वे मधुर वचनों से आश्वस्त करते हैं।यहाँ फिर एक बार हम संजय के शब्दों में उसकी व्याकुलता देखते हैं। वह चाहता है कि धृतराष्ट्र यह देखें कि श्रीकृष्ण ही विश्वेश्वर हैं और वे पाण्डवों के साथ हैं। किन्तु कैसे क्या कभी एक अन्धा व्यक्ति देख सकता हैफिर रणभूमि का दृश्य है। संजय अर्जुन के शब्दों में सूचित करता है कि