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Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 7

भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 7

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्।
मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि।।11.7।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 11.7)

।।11.7।।हे नींदको जीतनेवाले अर्जुन मेरे इस शरीरके एक देशमें चराचरसहित सम्पूर्ण जगत्को अभी देख ले। इसके सिवाय तू और भी जो कुछ देखना चाहता है? वह भी देख ले।

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।11.7।। हे गुडाकेश आज (अब) इस मेरे शरीर में एक स्थान पर स्थित हुए चराचर सहित सम्पूर्ण जगत् को देखो तथा और भी जो कुछ तुम देखना चाहते हो? उसे भी देखो।।

हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी

।।11.7।। व्याख्या --  गुडाकेश -- निद्रापर अधिकार प्राप्त करनेसे अर्जुनको गुडाकेश कहते हैं। यहाँ यह सम्बोधन देनेका तात्पर्य है कि तू निरालस्य होकर सावधानीसे मेरे विश्वरूपको देख।इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम्? मम देहे -- दसवें अध्यायके अन्तमें भगवान्ने कहा था कि मैं सम्पूर्ण जगत्को एक अंशसे व्याप्त करके स्थित हूँ। इसीपर अर्जुनके मनमें विश्वरूप देखनेकी इच्छा हुई। अतः भगवान् कहते हैं कि हाथमें घोड़ोंकी लगाम और चाबुक लेकर तेरे सामने बैठे हुए मेरे इस शरीरके एक देश(अंश) में चरअचरसहित सम्पूर्ण जगत्को देख। एक देशमें देखनेका अर्थ है कि तू जहाँ दृष्टि डालेगा? वहीं तेरेको अनन्त ब्रह्माण्ड दीखेंगे। तू मनुष्य? देवता? यक्ष? राक्षस? भूत? पशु? पक्षी आदि चलनेफिरनेवाले जङ्गम और वृक्ष? लता घास? पौधा आदि स्थावर तथा पृथ्वी? पहाड़? रेत आदि जडसहित सम्पूर्ण जगत्को अद्य -- अभी? इसी क्षण देख ले? इसमें देरीका काम नहीं है।यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि -- भगवान्के शरीरमें सब बातें वर्तमान थीं अर्थात् जो बातें भूतकालमें बीत गयी हैं और जो भविष्यमें बीतनेवाली हैं? वे सब बातें भगवान्के शरीरमें वर्तमान थीं। इसलिये भगवान् कहते हैं कि तू और भी जो कुछ देखना चाहता है? वह भी देख ले। अर्जुन और क्या देखना चाहते थे अर्जुनके मनमें सन्देह था कि युद्धमें जीत हमारी होगी या कौरवोंकी (गीता 2। 6) इसलिये भगवान् कहते हैं कि वह भी तू मेरे इस शरीरके एक अंशमें देख ले।विशेष बातजैसे दसवें अध्यायमें भगवान्से जो मेरी विभूति और योगको तत्त्वसे जानता है? उसका मेरेमें दृढ़ भक्तियोग हो जाता है इस बातको सुनकर ही अर्जुनने भगवान्की स्तुतिप्रार्थना करके विभूतियाँ पूछी थीं? ऐसे ही भगवान्से मेरे एक अंशमें सारा संसार स्थित है इस बातको सुनकर अर्जुनने विश्वरूप दिखानेके लिये प्रार्थना की है। अगर भगवान् अथवा कहकर अपनी ही तरफसे मेरे किसी एक अंशमें सम्पूर्ण जगत् स्थित है यह बात न कहते? तो अर्जुन विश्वरूप देखनेकी इच्छा ही नहीं करते। जब इच्छा ही नहीं करते? तो फिर विश्वरूप दिखानेके लिये प्रार्थना कैसे करते और जब प्रार्थना ही नहीं करते? तो फिर भगवान् अपना विश्वरूप कैसे दिखाते इससे सिद्ध होता है कि भगवान् कृपापूर्वक अपनी ओरसे ही अर्जुनको अपना विश्वरूप दिखाना चाहते हैं।ऐसी बात गीताके आरम्भमें भी आयी है। जब अर्जुनने भगवान्से दोनों सेनाओंके बीचमें रथ खड़ा करनेके लिये कहा? तब भगवान्ने रथको पितामह भीष्म और द्रोणाचार्यके सामने खड़ा किया और अर्जुनसे कहा -- इन कुरुवंशियोंको देखो -- कुरून् पश्य (1। 25)। इसका यही आशय मालूम देता है कि भगवान् कृपापूर्वक गीता प्रकट करना चाहते हैं। कारण कि यदि भगवान् ऐसा न कहते तो अर्जुनको शोक नहीं होता और गीताका उपदेश आरम्भ नहीं होता। तात्पर्य है कि भगवान्ने अपनी तरफसे कृपा करके ही गीताको प्रकट किया है। सम्बन्ध --   भगवान्ने तीन श्लोकोंमें चार बार पश्य पदसे अपना रूप देखनेके लिये आज्ञा दी। इसके अनुसार ही अर्जुन आँखें फाड़फाड़कर देखते हैं और देखना चाहते भी हैं परन्तु अर्जुनको कुछ भी नहीं दीखता। इसलिये अब भगवान् आगेके श्लोकमें अर्जुनको न दीखनेका कारण बताते हुए उनको दिव्यचक्षु देकर विश्वरूप देखनेकी आज्ञा देते हैं।

हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी

।।11.7।। प्रथम तो भगवान् उत्साही साधक के साहसी मन को इसके लिए प्रशिक्षित करते हैं कि उसमें जानने की उत्सुकता रूपी अक्षय धन का विकास हो। तत्पश्चात् उनका प्रयत्न है कि यह उत्सुकता तीव्र उत्कण्ठा या जिज्ञासा में परिवर्तित हो जाये। इसके लिए ही वे विश्वरूप में दर्शनीय रूपों का उल्लेख करते हैं। इस युक्ति से साधक का मन पूर्ण उत्कटता से एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाता है। यही इस श्लोक का प्रयोजन है। ध्यानपूर्वक इस श्लोक पर विचार करने से ज्ञात होगा कि यहाँ व्यासजी ने भक्तिशास्त्र में वर्णित भक्ति की रूपरेखा दी है।इहैकस्थम् का अर्थ है यहाँ इसी एक स्थान पर। इन शब्दों के द्वारा श्रीकृष्ण सम्पूर्ण चराचर (जड़ चेतन) जगत को अपने शरीर में दर्शाते हैं। श्रीकृष्ण स्वयं ही इह शब्द को स्पष्ट करते हुए कहते हैं? मेरे शरीर में। सम्पूर्ण चराचर सहित भौतिक जगत् को दबाकर श्रीकृष्ण की देहाकृति में स्थित हुआ दिखलाना था। जैसा कि हम इस अध्याय की प्रस्तावना में देख चुके हैं कि अर्जुन के मन से देश की कल्पना को सर्वथा मुक्त नहीं किया गया था? किन्तु केवल भगवान् श्रीकृष्ण के परिच्छिन्न देह के तुल्य समष्टि आकाश की कल्पना को उसके मन में शेष रखा था। इस मन के द्वारा जब अर्जुन बाहर देखता है? तो उसे भगवान् के शरीर में ही सम्पूर्ण विश्व अपने व्ाविध विस्तार को यथावत् रखते हुए लघु रूप में दिखाई देता है।यद्यपि चराचर शब्द का अर्थ इतना व्यापक है कि उसके उल्लेख से सम्पूर्ण विश्व का निर्देश हो जाता है? किन्तु फिर भी अर्जुन का उत्साह बढ़ाने के लिए वे कहते हैं? और भी जो कुछ तुम देखना चाहते हो? उसे भी देखो। मानव के विशिष्ट स्वभाव के अनुसार अर्जुन का मन अपनी तात्कालिक समस्याओं से चिन्तातुर था? अत स्वाभाविक ही है कि उसकी उत्सुकता भविष्य की घटनाओं को जानने की थी। प्रारम्भ मे उसका प्रयत्न समस्या के समाधान को देखने के लिए अधिक था और अनेकता में व्याप्त एकत्व का साक्षात्कार करने के लिए कम।विभूतियोग के अध्याय में एक परमात्मा को सब में दिखाया गया था? और यहाँ सब को एक परमात्मा में दिखाया जानेवाला है

English Translation - Swami Gambirananda

11.7 See now, O gudakesa, O Gudakesa (Arjuna), the entire Universe together with the moving and the non-moving, concentrated at the same place here in My body, as also whatever else you would like to see.

English Translation - Swami Sivananda

11.7 Now behold, O Arjuna, in this, My body, the whole universe centred in one including the moving and the unmoving and whatever else thou desirest to see.

English Translation - Dr. S. Sankaranarayan

11.7. Now, behold the entire universe, including the moving and the unmoving, and whatsoever else you desire to see-all established in one here, in My body, O Gudakesa (Arjuna) !

English Commentary - Swami Sivananda

11.7 इह in this? एकस्थम् centred in one? जगत् the universe? कृत्स्नम् whole? पश्य behold? अद्य now? सचराचरम् with the moving and the unmoving? मम My? देहे in body? गुडाकेश O Gudakesa? यत् whatever? च and? अन्यत् other? द्रष्टुम् to see? इच्छसि (thou) desirest.Commentary Anyat Other whatever else. Your success or defeat in the war? about which you,have entertained a doubt. (Cf.II.6)

English Translation of Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya's

11.7 Pasya, see; adya, now; O Gudakesa, the krtsnam, entire; jagat, Universe; sa-cara-acaram, existing together with the moving and the non-moving; ekastham, concentrated at the same place; iha, here; mama dehe, in My body; ca, as also; yat anyat, whatever else-even those victory, defeat, etc. with regard to which you expressed doubt in, whether we shall win, or whether they shall coner us (2.6); if icchasi, you would like; drastum, to see them.

English Translation of Commentary - Dr. S. Sankaranarayan

11.7 Sri Abhinavagupta did not comment upon this sloka.

English Translation of Ramanuja's Sanskrit Commentary

11.7 Here, in this one body of Mine, and even there, gathered together in a single spot, behold the universe with all mobile and immobile entities. Whatever else you desire to see (i.e., Arjunas chances of victory), behold that also in one part of this single body.

Commentary - Chakravarthi Ji

On this occasion (iha), this universe, which is impossible for you to see completely even if you wander within it for millions of years, is situated in just one part of my body (ekastham). See that universe and whatever else you desire to see, such as your victory or defeat (yac ca anyat) in my body, which is the shelter of the universe, being its cause.

Rudra Vaishnava Sampradaya - Commentary

Lord Krishna is stating pasya behold now in His visvarupa or divine universal form, this very moment the entire creation with all its movable and immovable components all integrated together and united as different parts of a singular form in His transcendental universal form. This phenomenal form is impossible of being seen by demigods, humans and demons even in tens of millions of years wandering unobstructed throughout all creation. Everything that exists can be seen in this universal form as well as anything else that may be seen such as past and future along with different conditions in creation including victory and defeat. Also prakriti the material substratum as well as the brahman the spiritual substratum pervading all existence.

Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary

Shri Vaishnava Sampradaya - Commentary

Now Lord Krishna reveals that the whole creation consisting of unlimited moving and stationary things are all contained in ihaikastham meaning in only one part of His visvarupa or divine universal form and anything else that could be desired to be seen is in this location as well. This denotes that there are many other marvels and wonders in other parts that are undisclosed.

Kumara Vaishnava Sampradaya - Commentary

Now Lord Krishna reveals that the whole creation consisting of unlimited moving and stationary things are all contained in ihaikastham meaning in only one part of His visvarupa or divine universal form and anything else that could be desired to be seen is in this location as well. This denotes that there are many other marvels and wonders in other parts that are undisclosed.

Transliteration Bhagavad Gita 11.7

Ihaikastham jagatkritsnam pashyaadya sacharaacharam; Mama dehe gudaakesha yachchaanyad drashtumicchasi.

Word Meanings Bhagavad Gita 11.7

iha—here; eka-stham—assembled together; jagat—the universe; kṛitsnam—entire; paśhya—behold; adya—now; sa—with; chara—the moving; acharam—the non- moving; mama—my; dehe—in this form; guḍākeśha—Arjun, the conqueror of sleep; yat—whatever; cha—also; anyat—else; draṣhṭum—to see; ichchhasi—you wish