न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्।।11.8।।
।।11.8।।तू अपनी इस आँखसे अर्थात् चर्मचक्षुसे मेरेको देख ही नहीं सकता। इसलिये मैं तुझे दिव्य चक्षु देता हूँ? जिससे तू मेरी ईश्वरसम्बन्धी सामर्थ्यको देख।
।।11.8।। परन्तु तुम अपने इन्हीं (प्राकृत) नेत्रों के द्वारा मुझे देखने में समर्थ नहीं हो (इसलिए) मैं तुम्हें दिव्यचक्षु देता हूँ? जिससे तुम मेरे ईश्वरीय योग को देखो।।