सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.14।।
।।12.14।।सब प्राणियोंमें द्वेषभावसे रहित? सबका मित्र (प्रेमी) और दयालु? ममतारहित? अहंकाररहित? सुखदुःखकी प्राप्तिमें सम? क्षमाशील? निरन्तर सन्तुष्ट? योगी? शरीरको वशमें किये हुए? दृढ़ निश्चयवाला? मेरेमें अर्पित मनबुद्धिवाला जो मेरा भक्त है? वह मेरेको प्रिय है।
।।12.14।। जो संयतात्मा? दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है? जो अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है? जो ऐसा मेरा भक्त है? वह मुझे प्रिय है।।