अनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः।।12.16।।
।।12.16।।जो आकाङ्क्षासे रहित? बाहरभीतरसे पवित्र? दक्ष? उदासीन? व्यथासे रहित और सभी आरम्भोंका अर्थात् नयेनये कर्मोंके आरम्भका सर्वथा त्यागी है? वह मेरा भक्त मुझे प्रिय है।
।।12.16।। जो अपेक्षारहित? शुद्ध? दक्ष? उदासीन? व्यथारहित और सर्वकर्मों का संन्यास करने वाला मेरा भक्त है? वह मुझे प्रिय है।।