ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।
सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्।।12.3।।
।।12.3।।जो अपनी इन्द्रियोंको वशमें करके अचिन्त्य? सब जगह परिपूर्ण? अनिर्देश्य? कूटस्थ? अचल? ध्रुव? अक्षर और अव्यक्तकी उपासना करते हैं? वे प्राणिमात्रके हितमें रत और सब जगह समबुद्धिवाले मनुष्य मुझे ही प्राप्त होते हैं।
।।12.3।। परन्तु जो भक्त अक्षर? अनिर्देश्य? अव्यक्त? सर्वगत? अचिन्त्य? कूटस्थ? अचल और ध्रुव की उपासना करते हैं।।