मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।
निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।।12.8।।
।।12.8।।तू मेरेमें मनको लगा और मेरेमें ही बुद्धिको लगा इसके बाद तू मेरेमें ही निवास करेगा -- इसमें संशय नहीं है।
।।12.8।। तुम अपने मन और बुद्धि को मुझमें ही स्थिर करो? तदुपरान्त तुम मुझमें ही निवास करोगे? इसमें कोई संशय नहीं है।।