मयि चानन्ययोगेन भक्ितरव्यभिचारिणी।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि।।13.11।।
।।13.11।।मेरेमें अनन्ययोगके द्वारा अव्यभिचारिणी भक्तिका होना? एकान्त स्थानमें रहनेका स्वभाव होना और जनसमुदायमें प्रीतिका न होना।
।।13.11।। अनन्ययोग के द्वारा मुझमें अव्यभिचारिणी भक्ति एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव और (असंस्कृत) जनों के समुदाय में अरुचि।।