क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम।।13.3।।
।।13.3।।हे भरतवंशोद्भव अर्जुन तू सम्पूर्ण क्षेत्रोंमें क्षेत्रज्ञ मेरेको ही समझ और क्षेत्रक्षेत्रज्ञका जो ज्ञान है? वही मेरे मतमें ज्ञान है।
।।13.3।। हे भारत तुम समस्त क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मुझे ही जानो। क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का जो ज्ञान है? वही (वास्तव में) ज्ञान है ? ऐसा मेरा मत है।।