अनादित्वान्निर्गुणत्वात्परमात्मायमव्ययः।
शरीरस्थोऽपि कौन्तेय न करोति न लिप्यते।।13.32।।
।।13.32।।हे कुन्तीनन्दन यह पुरुष स्वयं अनादि और गुणोंसे रहित होनेसे अविनाशी परमात्मस्वरूप ही है। यह शरीरमें रहता हुआ भी न करता है और न लिप्त होता है।
।।13.32।। हे कौन्तेय अनादि और निर्गुण होने से यह परमात्मा अव्यय है। शरीर में स्थित हुआ भी? वस्तुत? वह न (कर्म) करता है और न (फलों से) लिप्त होता है।।