यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।।13.34।।
।।13.34।। हे भारत जिस प्रकार एक ही सूर्य इस सम्पूर्ण लोक को प्रकाशित करता है? उसी प्रकार एक ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ) सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।।