क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।।13.35।।
।।13.35।। इस प्रकार? जो पुरुष ज्ञानचक्षु के द्वारा क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा प्रकृति के विकारों से मोक्ष को जानते हैं? वे परम ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।।
The path of deliverance from prakriti or the material substratum pervading physical existence and moksa or liberation from the material existence for the jivas is achieved by embracing the 20 virtues given in verses 8 to 12 of this chapter beginning with the word amanitvam meaning humilty, reverence.