अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः।।13.8।।
।।13.8।।मानित्व(अपनेमें श्रेष्ठताके भाव) का न होना? दम्भित्व(दिखावटीपन) का न होना? अहिंसा? क्षमा? सरलता? गुरुकी सेवा? बाहरभीतरकी शुद्धि? स्थिरता और मनका वशमें होना।
।।13.8।। अमानित्व? अदम्भित्व? अहिंसा? क्षमा? आर्जव? आचार्य की सेवा? शुद्धि? स्थिरता और आत्मसंयम।।