इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्।।13.9।।
।।13.9।।इन्द्रियोंके विषयोंमें वैराग्यका होना? अहंकारका भी न होना और जन्म? मृत्यु? वृद्धावस्था तथा व्याधियोंमें दुःखरूप दोषोंको बारबार देखना।
।।13.9।। इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य? अहंकार का अभाव? जन्म? मृत्यु? वृद्धवस्था? व्याधि और दुख में दोष दर्शन৷৷.।।