श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।14.1।।
।।14.1।।श्रीभगवान् बोले -- सम्पूर्ण ज्ञानोंमें उत्तम और पर ज्ञानको मैं फिर कहूँगा? जिसको जानकर सबकेसब मुनिलोग इस संसारसे मुक्त होकर परमसिद्धिको प्राप्त हो गये हैं।
।।14.1।। व्याख्या -- परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् -- तेरहवें अध्यायके अठारहवें? तेईसवें और चौंतीसवें श्लोकमें भगवान्ने क्षेत्रक्षेत्रज्ञका? प्रकृतिपुरुषका जो ज्ञान (विवेक) बताया था? उसी ज्ञानको फिर बतानेके लिये भगवान् भूयः प्रवक्ष्यामि पदोंसे प्रतिज्ञा करते हैं।लौकिक और पारलौकिक जितने भी ज्ञान हैं अर्थात् जितनी भी विद्याओं? कलाओँ? भाषाओं? लिपियों आदिका ज्ञान है? उन सबसे प्रकृतिपुरुषका भेद बतानेवाला? प्रकृतिसे अतीत करनेवाला? परमात्माकी प्राप्ति करानेवाला यह ज्ञान श्रेष्ठ है? सर्वोत्कृष्ट है। इसके समान दूसरा कोई ज्ञान है ही नहीं? हो सकता ही नहीं और होना सम्भव भी नहीं। कारण कि दूसरे सभी ज्ञान संसारमें फँसानेवाले हैं? बन्धनमें डालनेवाले हैं।यद्यपि उत्तम और पर -- इन दोनों शब्दोंका एक ही अर्थ होता है? तथापि जहाँ एक अर्थके दो शब्द एक साथ आ जाते हैं? वहाँ उनके दो अर्थ होते हैं। अतः यहाँ उत्तम शब्दका अर्थ है कि यह ज्ञान प्रकृति और उसके कार्य संसारशरीरसे सम्बन्धविच्छेद करानेवाला होनेसे श्रेष्ठ है और पर शब्दका अर्थ है कि यह ज्ञान परमात्माकी प्राप्ति करानेवाला होनेसे सर्वोत्कृष्ट है।यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः -- जिस ज्ञानको जानकर अर्थात् जिसका अनुभव करके बड़ेबड़े मुनिलोग इस संसारसे मुक्त होकर परमात्माको प्राप्त हो गये हैं? उसको मैं कहूँगा। उस ज्ञानको प्राप्त करनेपर कोई मुक्त हो और कोई मुक्त न हो -- ऐसा होता ही नहीं? प्रत्युत इस ज्ञानको प्राप्त करनेवाले सबकेसब मुनिलोग मुक्त हो जाते हैं? संसारके बन्धनसे? संसारकी परवशतासे छूट जाते हैं और परमात्माको प्राप्त हो जाते हैं।तत्त्वका मनन करनेवाले जिस मनुष्यका शरीरके साथ अपनापन नहीं रहा? वह मुनि कहलाता है।परां सिद्धिम् कहनेका तात्पर्य है कि सांसारिक कार्योंकी जितनी सिद्धियाँ हैं अथवा योगसाधनसे होनेवाली अणिमा? महिमा? गरिमा आदि जितनी सिद्धियाँ हैं? वे सभी वास्तवमें असिद्धियाँ ही हैं। कारण कि वे सभी जन्ममरण देनेवाली? बन्धनमें डालनेवाली? परमात्मप्राप्तिमें बाधा डालनेवाली हैं। परन्तु परमात्मप्राप्तिरूप जो सिद्धि है? वह सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि उसको प्राप्त होनेपर मनुष्य जन्ममरणसे छूट जाता है।