रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते।।14.15।।
।।14.15।। रजोगुण के प्रवृद्ध काल में मृत्यु को प्राप्त होकर कर्मासक्ति वाले (मनुष्य) लोक में वह जन्म लेता है तथा तमोगुण के प्रवृद्धकाल में (मरण होने पर) मूढ़योनि में जन्म लेता है।।
।।14.15।। पूर्वोक्त सिद्धांत के अनुसार ही मरणकाल में रजोगुण के आधिक्य के प्रभाव से जीव कर्मासक्त मनुष्य लोक में जन्म लेता है। उसके लिए कर्म करने और फल भोगने के लिए यही अत्यन्त उपयुक्त क्षेत्र है।इसके विपरीत यदि तमोगुण के प्रवृद्ध हुए काल में जीव देह का त्याग करता है? तो उसके फलस्वरूप वह मूढ़योनि अर्थात् पशुपक्षी या वनस्पति जीवन को प्राप्त होता है।कुछ दार्शनिकों का यह मत है कि एक बार विकास के सोपान पर मनुष्यत्व को प्राप्त कर लेने के पश्चात् हमारा निम्न स्तर की योनियों में पतन नहीं होता। निसन्देह? यह सान्त्वना प्रदान करने वाला मत है परन्तु अनुभूत उपलब्ध तथ्यों के विरुद्ध होने से ग्राह्य नहीं हो सकता। वास्तविकता यह है कि प्रगति के लिए सर्वोत्तम परिस्थिति और वातावरण को उपलब्ध कराने के पश्चात् भी सभी मनुष्य समान रूप से उनका उपयोग करके गौरवमयी सांस्कृतिक प्रतिष्ठा को प्राप्त नहीं होते। एक धनी मनुष्य का सामान्य बुद्धि का पुत्र? जीवन के प्रारम्भ से ही अनुकूल स्थिति को प्राप्त करता है तथापि प्राय यह देखा जाता है कि वह अपनी स्थिति का उचित उपयोग करने के स्थान पर प्रमाद और विलास का जीवन जीकर अपना सर्वनाश ही कर लेता है।बुद्धि से सम्पन्न होने पर भी हम में से कितने लोग विवेकपूर्ण आचरण करते हैं समाज के कुछ लोग तो पशुओं की ओर ईर्ष्या की दृष्टि से देखते हुए घोषणा भी करते हैं कि उनका जीवन श्रेष्ठतर और सुखी है कहने का तात्पर्य यह हुआ कि कुछ अल्पसंख्यक द्विपादों की दृष्टि से चतुष्पादों का जीवन उच्चतर विकास का है यदि किसी व्यक्ति का यही विचार हो? तो उसके लिए पशुजीवन निन्दनीय न होकर वरणीय होता है? जिसकी वह कामना करता है। मद्यपान न करने वाला एक संयमी पुरुष मधुशाला को दुखालय समझता है किन्तु एक मद्यपायी को वही स्थान सुख और शान्ति का विश्रामालय प्रतीत होता है।तामसिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए पशुयोनि में जन्म लेना माने आनन्द प्राप्ति का अद्भुत अवसर है? जहाँ वे अपनी रुचि और प्रवृत्ति को पूर्णतया व्यक्त कर सकते हैं। इस प्रकार दर्शनशास्त्र की दृष्टि से देखने पर हमें बिना किसी सन्देह या संकोच के यह स्वीकार करना पड़ेगा कि तमोगुणी लोगों को पशु देह में ही पूर्ण सन्तोष का अनुभव होगा। अत यहाँ कहा गया है? तमोगुण के प्रवृद्ध हुए काल में मरण होने पर जीव मूढ़योनि में जन्म लेता है।प्रस्तुत प्रकरण का सारांश यही है कि