श्री भगवानुवाच
प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव।
न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति।।14.22।।
।।14.22।।श्रीभगवान् बोले -- हे पाण्डव प्रकाश? प्रवृत्ति तथा मोह -- ये सभी अच्छी तरहसे प्रवृत्त हो जायँ तो भी गुणातीत मनुष्य इनसे द्वेष नहीं करता? और ये सभी निवृत्त हो जायँ तो इनकी इच्छा नहीं करता।
।।14.22।। श्रीभगवान् ने कहा -- हे पाण्डव (ज्ञानी पुरुष) प्रकाश? प्रवृत्ति और मोह के प्रवृत्त होने पर भी उनका द्वेष नहीं करता तथा निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा नहीं करता है।।