मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।।14.25।।
।।14.25।।जो धीर मनुष्य सुखदुःखमें सम तथा अपने स्वरूपमें स्थित रहता है जो मिट्टीके ढेले? पत्थर और सोनेमें सम रहता है जो प्रियअप्रियमें तथा अपनी निन्दास्तुतिमें सम रहता है जो मानअपमानमें तथा मित्रशत्रुके पक्षमें सम रहता है जो सम्पूर्ण कर्मोंके आरम्भका त्यागी है? वह मनुष्य गुणातीत कहा जाता है।
।।14.25।। जो मान और अपमान में सम है शत्रु और मित्र के पक्ष में भी सम है? ऐसा सर्वारम्भ परित्यागी पुरुष गुणातीत कहा जाता है।।