सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।।14.9।।
।।14.9।।हे भरतवंशोद्भव अर्जुन सत्त्वगुण सुखमें और रजोगुण कर्ममें लगाकर मनुष्यपर विजय करता है तथा तमोगुण ज्ञानको ढककर एवं प्रमादमें भी लगाकर मनुष्यपर विजय करता है।
।।14.9।। हे भारत सत्त्वगुण सुख में आसक्त कर देता है और रजोगुण कर्म में? किन्तु तमोगुण ज्ञान को आवृत्त करके जीव को प्रमाद से युक्त कर देता है।।