उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः।।15.10।।
।।15.10।। शरीर को त्यागते हुये? उसमें स्थित हुये अथवा (विषयों को) भोगते हुये? गुणों से समन्वित आत्मा को विमूढ़ लोग नहीं देखते हैं (परन्तु) ज्ञानचक्षु वाले पुरुष उसे देखते हैं।।
How one does not perceive and how one is able to perceive is examined by Lord Krishna.