गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।15.13।।
।।15.13।। मैं ही पृथ्वी में प्रवेश करके अपने ओज से भूतमात्र को धारण करता हूँ और रसस्वरूप चन्द्रमा बनकर समस्त औषधियों का अर्थात् वनस्पतियों का पोषण करता हूँ।।
।।15.13।। निसन्देह कृत्रिम उर्वरकों के आविष्कार के बहुत पूर्व से पृथ्वी का दीर्घ इतिहास रहा है। संभवत अतीत के कुछ युगों में वर्तमान समय से भी अधिक जनसंख्या इस पृथ्वी रही होगी। इस पर भी पृथ्वी ने जीवन को धारण कर रखा है। इस लोक के प्राणियों के धारणपोषण करने की पृथ्वी की क्षमता? उष्णता? खनिज द्रव्य आदि सभी भगवान् के ओजस्वरूप हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि जो चैतन्य सूर्य की उपाधि में प्रकाश तथा उष्णता के रूप में व्यक्त होता है? वही चैतन्य पृथ्वी में उसकी उर्वरा शक्ति और जीवन को धारण करने वाली गुप्त पौष्टिकता के रूप में व्यक्त होता है।रसस्वरूप चन्द्रमा बनकर मैं औषधियों का पोषण करता हूँ वही एक चेतन तत्त्व चन्द्रमा के माध्यम से चन्द्रप्रकाश के रूप में व्यक्त होकर वनस्पतियों को पौष्टिक तत्त्वों से भर देता है। यदि इस कथन को पूर्व की पीढ़ी ने अस्वीकार किया होगा? तो आज की वैज्ञानिक शिक्षा पाये हुये विद्यार्थी गण इस कथन को चुनौती देने का साहस नहीं करेंगे। आधुनिक कृषि विज्ञान यह सिद्ध करता है कि ग्रहमण्डलों का? और विशेष रूप से चन्द्रमा का? कृषि की अनुमानित उपज से एक अटूट सम्बन्ध है आधुनिक प्रयोगों से प्राप्त विवरणानुसार जहाँ टमाटर के बीजों को पूर्णिमा के दिन बोया गया और पुन पूर्णिमा के दिन ही तोड़ा गया? तो वहाँ अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि टमाटर की उपज सामान्य की अपेक्षा अधिक हुई थी।यह एक सुविदित और सर्वत्र स्वीकृत तथ्य है कि बीजों के लिये सुरक्षित रखे गये धान को न केवल सूर्य के ताप में सुखाया जाता है? वरन् उसे चन्द्रमा के प्रकाश में भी रखा जाता है। प्राकृतिक तथा आयुर्वेदिक चिकित्सक भी कुछ औषधियों को किसी निश्चित अवधि तक चन्द्रमा के प्रकाश में रखते हैं? और उनका यह कथन है कि इससे उन औषधियों में रोगोपचार की क्षमता आ,जाती है।इस श्लोक में इन सभी तथ्यों को इंगित मात्र किया गया है? जिससे यह सिद्ध होता है कि भगवान् श्रीकृष्ण का कथन अवैज्ञानिक नहीं है।भौतिक जगत् के सूर्य? चन्द्रमा और अग्नि ये ऊर्जा के स्रोत वस्तुत अनन्तस्वरूप परमात्मा ही हैं। सूर्य में यह प्रकाश है और चन्द्रमा में वह रसस्वरूप पोषक तत्त्व है। वही चैतन्य पृथ्वी में प्रवेश कर समस्त प्राणियों का धारणपोषण करने वाला बन जाता है।और