अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।15.14।।
।।15.14।।प्राणियोंके शरीरमें रहनेवाला मैं प्राणअपानसे युक्त वैश्वानर होकर चार प्रकारके अन्नको पचाता हूँ।
।।15.14।। मैं ही समस्त प्राणियों के देह में स्थित वैश्वानर अग्निरूप होकर प्राण और अपान से युक्त चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।।