आढ्योऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।।16.15।।
।।16.15।। मैं धनवान् और श्रेष्ठकुल में जन्मा हूँ। मेरे समान दूसरा कौन है?मैं यज्ञ करूंगा? मैं दान दूँगा? मैं मौज करूँगा इस प्रकार के अज्ञान से वे मोहित होते हैं।।
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