यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः।
न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।।16.23।।
।।16.23।।(टिप्पणी प0 829) जो मनुष्य शास्त्रविधिको छोड़कर अपनी इच्छासे मनमाना आचरण करता है? वह न सिद्धि(अन्तःकरणकी शुद्धि) को? न सुखको और न परमगतिको ही प्राप्त होता है।
।।16.23।। जो पुरुष शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी कामना से प्रेरित होकर ही कार्य करता है? वह न पूर्णत्व की सिद्धि प्राप्त करता है? न सुख और न परा गति।।