दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।16.5।।
।।16.5।।दैवीसम्पत्ति मुक्तिके लिये और आसुरीसम्पत्ति बन्धनके लिये है। हे पाण्डव तुम दैवीसम्पत्तिको प्राप्त हुए हो? इसलिये तुम्हें शोक (चिन्ता) नहीं करना चाहिये।
।।16.5।। हे पाण्डव दैवी सम्पदा मोक्ष के लिए और आसुरी सम्पदा बन्धन के लिए मानी गयी है? तुम शोक मत करो? क्योंकि तुम दैवी सम्पदा को प्राप्त हुए हो।।