एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः।
प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः।।16.9।।
।।16.9।।उपर्युक्त (नास्तिक) दृष्टिका आश्रय लेनेवाले जो मनुष्य अपने नित्य स्वरूपको नहीं मानते? जिनकी बुद्धि तुच्छ है? जो उग्रकर्मा और संसारके शत्रु हैं? उन मनुष्योंकी सामर्थ्यका उपयोग जगत्का नाश करनेके लिये ही होता है।
।।16.9।। इस दृष्टि का अवलम्बन करके नष्टस्वभाव के अल्प बुद्धि वाले? घोर कर्म करने वाले लोग जगत् के शत्रु (अहित चाहने वाले) के रूप में उसका नाश करने के लिए उत्पन्न होते हैं।।