अधिष्ठानं तथा कर्ता करणं च पृथग्विधम्।
विविधाश्च पृथक्चेष्टा दैवं चैवात्र पञ्चमम्।।18.14।।
।।18.14।।इसमें (कर्मोंकी सिद्धिमें) अधिष्ठान तथा कर्ता और अनेक प्रकारके करण एवं विविध प्रकारकी अलगअलग चेष्टाएँ और वैसे ही पाँचवाँ कारण दैव (संस्कार) है।
।।18.14।। अधिष्ठान (शरीर)? कर्ता? विविध करण (इन्द्रियादि)? विविध और पृथक्पृथक् चेष्टाएं तथा पाँचवा हेतु दैव है।।