श्री भगवानुवाच
काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः।
सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।18.2।।
।।18.2।। श्रीभगवान् ने कहा -- (कुछ) कवि (पण्डित) जन काम्य कर्मों के त्याग को संन्यास समझते हैं और विचारशील जन समस्त कर्मों के फलों के त्याग को त्याग कहते हैं।।
Lord Krishna explains that the absence of prescribed Vedic actions which hold even a miniscule residue for rewards is renunciation known as sannyasa or relinquishing of actions. Tyaja is renunciation by abandoning the desire for rewards and not the prescribed actions themselves. Both sannyasa and tyaja are considered renunciation.