सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।
अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्त्विकम्।।18.20।।
।।18.20।।जिस ज्ञानके द्वारा साधक सम्पूर्ण विभक्त प्राणियोंमें विभागरहित एक अविनाशी भाव(सत्ता) को देखता है? उस ज्ञानको तुम सात्त्विक समझो।
।।18.20।। जिस ज्ञान से मनुष्य? विभक्त रूप में स्थित समस्त भूतों में एक अविभक्त और अविनाशी (अव्यय) स्वरूप को देखता है? उस ज्ञान को तुम सात्त्विक जानो।।