बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श्रृणु।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय।।18.29।।
।।18.29।।हे धनञ्जय अब तू गुणोंके अनुसार बुद्धि और धृतिके भी तीन प्रकारके भेद अलगअलगरूपसे सुन? जो कि मेरे द्वारा पूर्णरूपसे कहे जा रहे हैं।
।।18.29।। हे धनंजय मेरे द्वारा अशेषत और पृथकत कहे जाने वाले? गुणों के कारण उत्पन्न हुए बुद्धि और धृति के त्रिविध भेद को सुनो।।