प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभये।
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी।।18.30।।
।।18.30।।हे पृथानन्दन जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्तिको? कर्तव्य और अकर्तव्यको? भय और अभयको तथा बन्धन और मोक्षको जानती है? वह बुद्धि सात्त्विकी है।
।।18.30।। हे पार्थ जो बुद्धि प्रवृत्ति और निवृत्ति? कार्य और अकार्य? भय और अभय तथा बन्ध और मोक्ष को तत्त्वत जानती है? वह बुद्धि सात्विकी है।।